आंगनवाड़ियों में बंटे स्मार्ट फोन से मिलेगी नीतियों को सही राह

आंगनवाड़ियों में बंटे स्मार्ट फोन से मिलेगी नीतियों को सही राह

नरजिस हुसैन

इसी साल अगस्त में केन्द्र सरकार ने सार्वजनिक स्वास्थ्य की सबसे छोटी लेकिन मजबूत कड़ी आंगनवाड़ियों को स्मार्ट फोन देकर देश के स्वास्थ्य की नब्ज टटोलने का काम किया है। सरकार ने आठ राज्यों में दो लाख से भी ज्यादा स्मार्ट फोन और टेबेलेट आंगनवाड़ियों को दिए ताकि हर स्तर के बच्चों के पोषण स्तर (दुबलापन, कुपोषण और अनीमिया) से सरकार बाखबर रहे। पोषण अभियान के तहत बांटी गई इन सुविधाओं से सरकार और स्वास्थ्य विशेषज्ञों को उम्मीद है कि आने वाले वक्त में यह निवेश सकारात्मक नतीजे दिखाएगा।

हाल ही में जारी ग्लोबल हंगर इंडेक्स (जीएचआई) की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में दुनिया के सबसे ज्यादा कुपोषित बच्चे रहते हैं। 117 देशों पर आई इस रिपोर्ट में भारत 102वें नंबर पर है। इस रिपोर्ट में साफतौर से कहा गया है कि (6-23 महीने) हर लिहाज से भारत में बच्चे कुपोषित हैं मसलन उम्र के हिसाब से लंबाई कम, वजन कम, बेहद पतले और शिशु मृत्यु दर ज्यादा है जिसकी बड़ी वजह बच्चों को बराबर मात्रा में खाना न मिल पाना है।

फिलहाल सरकार ने आंगनवाड़ियों को स्मार्ट फोन देने की जो पहल की है उसका मकसद बच्चों में कुपोषण और दुबलापन का मौजूदा आंकड़ा 38.2 फीसदी को 2022 तक घटाकर 25 प्रतिशत करना है। समग्र शिशु विकास सेवा ऐप के तहत अब सरकार को हर गांव का पोषण का आंकड़ा आसानी से मिल सकेगा। इस व्यवस्था से सरकार और नीति आयोग जहां इस दिशा में नीतियां बनती है को सूचना और जानकारी मिलने से सही दिशा में नीतियां बनाने में मदद मिलेगी। ये ऐप ऑफलाइन भी काम कर रहा है ऐसा बंदोबस्त इसलिए किया गया ताकि दूर-दराज के इलाकों में जहां इंटरनेट सही से काम नहीं कर पाता उस इलाके से भी सरकार संपर्क में बनी रहे।

आंगनवाड़ियों की इकट्ठा की गई तमाम जानकारियों को उनका निरिक्षक यानी सुपरवाइजर देखता है और इन आंकड़ों या जानकारियों का डाटाबेस आगे पहुंचाने की जिम्मेदारी इन्हीं की होती है। इन आंकड़ों को परिवार और स्वास्थ्य मंत्रालय के अलावा संबंधित विभाग देख और पढ़ सकते हैं। इसी से ता चलता है कि किस राज्य के किस जिले के किस गांव में कौनसा बच्चा कुपोषित, दुबला और कमजोर है और उसी के हिसाब से कार्यवाही तय की जाएगी। यही नियम स्तनपान कराने वाली माताओं और गर्भवती माताओं पर भी लागू हो रही है जिससे वक्त रहते सही कदम उठाए जा सकें। 

फिलहाल आठ राज्यों जिनमें आंध्र प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश, पुद्दुचेरी, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, दादर और नगर हवेली शामिल हैं जहां सबसे ज्यादा इस कार्यक्रम की जरूरत थी। हालांकि, पूरे देश के 28 राज्यों के 718 जिलों में करीब 11 लाख स्मार्ट फोन देने की जरूरत है जो सरकार 2020 तक चरणबद्ध तरीके से ही कर पाएगी। इस बीच काबिलेतारीफ बात यह है कि इतने कम वक्त में ही 92 लाख बच्चे और 12 लाख गर्भवती महिलाएं इस कार्यक्रम से फायदा उठा रहे हैं।

लेकिन, विकास की गति को और बढ़ाने के लिए नीति आयोग ने इसी महीने राज्यों को राष्ट्रीय पोषण मिशन के तहत चलाए गए इस कार्यक्रम में और चुस्ती से काम करने को कहा है। गौरतलब है कि यह कार्यक्रम पहली बार देश में चलाया जा रहा है और इसके उम्मीद के मुताबिक नतीजे आने जरूरी नहीं है क्योंकि प्रशिक्षण या ट्रेनिंग सभी सेंटरों पर उपलब्ध करानी मुश्किल तो है ही इसमें समय भी लग रहा है। बहरहाल, सरकार की इस कोशिश की तारीफ करना बिल्कुल जायज है क्योंकि इसी तरह की छोटी पहल से धीमी रफ्तार में ही सही बड़ी सफलता जरूर मिलेगी। सार्वजनिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में यह सरकार का बेहतरीन और समझदार कदम माना जाना चाहिए।

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